Thursday, August 13, 2015

कोयला भी हो उजला, जरि-जरि हैं सेव

कोयला भी हो उजला, जरि-जरि हैं सेव
मूरख होय न ऊजला, ज्यों कालर का खेत

संत शिरोमणि कबीरदास ही कहते हैं कि कोयला भी उजला हो जाता है जब भली भांति जल कर उसमें सफदी आ जाती है. परन्तु मूरख का सुधारना उसी प्रकार नहीं होता जैसे ऊसर खेत में बीज नहीं उगते.

मूरख को समुझावते, ज्ञान गाँठि का जाय
कोयला होय न ऊजला. सौ मन साबुन न लाय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मूर्ख को उपदेश देने से अपने पास का ज्ञान चला जाता है, और वह मूर्ख तो कोयले के समान है जो सौ मन साबुन से धोने पर भी उजला होने वाला नहीं है.

मूर्ख को उपदेश
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये । पय: पानं भुजंगानां केवलं विष वर्धनम् ।।

मूर्ख व्‍यक्ति को उपदेश देने से उसका प्रकोप शान्‍त नहीं होता, जिस प्रकार सर्प को दूध पिलाने से उसका विष कम नहीं होता केवल उसका विष बढ़ता ही है