Thursday, September 17, 2015

आज न करें चंद्रमा के दर्शन

आज न करें चंद्रमा के दर्शन, भूल से देख लें तो ये उपाय करें

 

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। इस रात चंद्रमा को देखने से झूठे आरोप लगने का भय रहता है। यदि चंद्र दर्शन हो जाएं तो इस मंत्र का जाप करना चाहिए-

मंत्र
सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:।
सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष: स्यमन्तक:।।

जिन्हें संस्कृत का कम ज्ञान हो वह हिन्दी में इस प्रकार बोलें...
मंत्रार्थ- सिंह ने प्रसेन को मारा और सिंह को जाम्बवान ने मारा। हे सुकुमारक बालक तू मत रोवे, तेरी ही यह स्यमन्तक मणि है।

इस मंत्र के प्रभाव से कलंक नहीं लगता है। जो मनुष्य झूठे आरोप-प्रत्यारोप में फंस जाए, वह इस मंत्र को जपकर आरोप मुक्त हो सकता है। 
 
 

 

भगवान श्रीकृष्ण पर लगा था चोरी का आरोप

सत्राजित् नाम के एक यदुवंशी ने सूर्य भगवान को प्रसन्न कर स्यमंतक नाम की मणि प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती थी। उसके प्रभाव से पूरे राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि यानी बरसात न होना, सर्प, अग्नि, चोर आदि का डर नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् राजा उग्रसेन के दरबार में आया। वहां श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि कितना अच्छा होता यह मणि अगर राजा उग्रसेन के पास होती।
किसी तरह यह बात सत्राजित् को मालूम पड़ गई। इसलिए उसने मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक दिन प्रसेन जंगल गया। वहां सिंह ने उसे मार डाला। जब वह वापस नहीं लौटा तो लोगों ने यह आशंका उठाई कि श्रीकृष्ण उस मणि को चाहते थे। इसलिए सत्राजित् को मारकर उन्होंने ही वह मणि ले ली होगी, लेकिन मणि सिंह के मुंह में रह गई। जाम्बवान ने शेर को मारकर मणि ले ली। जब श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि उन पर झूठा आरोप लग रहा है तो वे सच्चाई की तलाश में जंगल गए।
वे जाम्बवान की गुफा तक पहुंचे और जाम्बवान से मणि लेने के लिए उसके साथ 21 दिनों तक घोर संग्राम किया। अंतत: जाम्बवान समझ गया कि श्रीकृष्ण तो उनके प्रभु हैं। त्रेता युग में श्रीराम के रूप में वे उनके स्वामी थे। जाम्बवान ने तब खुशी-खुशी वह मणि श्रीकृष्ण को लौटा दी तथा अपनी पुत्री जाम्बवंती का विवाह श्रीकृष्ण से करवा दिया. श्रीकृष्ण ने वह मणि सत्राजित् को सौंप दी। सत्राजित् ने भी खुश होकर अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
ऐसा माना जाता है कि इस प्रसंग को सुनने-सुनाने से भाद्रपद मास की चतुर्थी को भूल से चंद्र-दर्शन होने का दोष नहीं लगता।
 
 

श्रीगणेश ने दिया था चंद्रमा को श्राप

भगवान गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजवदन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य हुए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराता रहा। उसे अपने सौंदर्य पर अभिमान था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमानवश उनका उपहास करता है। क्रोध में आकर भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि- आज से तुम काले हो जाओगे।
चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने श्रीगणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा कि सूर्य के प्रकाश से तुम्हें धीरे-धीरे अपना स्वरूप पुनः प्राप्त हो जाएगा, लेकिन लेकिन आज (भाद्रपद शुक्ल चतुर्ती) का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। जो कोई व्यक्ति आज तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। इसीलिए भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं किया जाता।
 

Thursday, August 13, 2015

कोयला भी हो उजला, जरि-जरि हैं सेव

कोयला भी हो उजला, जरि-जरि हैं सेव
मूरख होय न ऊजला, ज्यों कालर का खेत

संत शिरोमणि कबीरदास ही कहते हैं कि कोयला भी उजला हो जाता है जब भली भांति जल कर उसमें सफदी आ जाती है. परन्तु मूरख का सुधारना उसी प्रकार नहीं होता जैसे ऊसर खेत में बीज नहीं उगते.

मूरख को समुझावते, ज्ञान गाँठि का जाय
कोयला होय न ऊजला. सौ मन साबुन न लाय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मूर्ख को उपदेश देने से अपने पास का ज्ञान चला जाता है, और वह मूर्ख तो कोयले के समान है जो सौ मन साबुन से धोने पर भी उजला होने वाला नहीं है.

मूर्ख को उपदेश
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये । पय: पानं भुजंगानां केवलं विष वर्धनम् ।।

मूर्ख व्‍यक्ति को उपदेश देने से उसका प्रकोप शान्‍त नहीं होता, जिस प्रकार सर्प को दूध पिलाने से उसका विष कम नहीं होता केवल उसका विष बढ़ता ही है

Wednesday, July 22, 2015

संपूर्ण कुम्भो न करोति शब्दं

संपूर्ण कुम्भो न करोति शब्दं अर्धघटो घोषमुपैति नूनं। विद्वान कुलीनो न करोति गर्वं गुणैर्विहीनो बहु जल्पयन्ति


अर्थात :- एक आधा भरा घड़ा हमेशा जोर से आवाज बनाता है, जबकि पानी से भरा एक घड़ा, किसी भी ध्वनि पैदा नहीं करता है जैसे विद्वान व्यक्ति कभी अपनी उपलब्धियों पर बड़ाई नहीं करता और गुणहीन व्यक्ति हमेशा अपनी उपलब्धियों  पर गर्व प्रदर्शित करता है |